लेखनी प्रतियोगिता -14-Mar-2022
भटका हुआ पथिक हूँ, आराम कौन दे!
अन्तस्थ के चीत्कार् को आवाज़ कौन दे!
मन शोर है चित मोर है,जग हुआ है मौन
सूनी पड़ी कविता को अलंकार कौन दे!
है सत्य कि प्रेम निरंकार है,अपने ही इष्ट को आकार कौन दे!
फिर क्यों दे उलाहना ये जग उन्हें,जो प्रेम में सबकुछ वार दे!
जो खो गया सत्य में,और सत्य ही पा गया
मोह है ये देह का,उपदेश कौन दे!उपदेश कौन दे!
कुंठित है,अकेला है, प्रतिपल ज़िम्मेदारियों का रेला है
इक क्षण आनंद का, इक नींद स्वप्न की
इक सफ़र बिन ध्येय का, इक खुशी बिन लालच की
सब लगता जैसे आडंबर है, इनसे आज़ादी कौन दे!
भटका हुआ पथिक हूं,आराम कौन दे!
माना की बहुत कठिन है पथ
है प्रेम डगर शूलों से भरी
पर कलयुग के इस दौर में भी
सत्य की पताका कौन धरे।
भटका हुआ पथिक हूं ,आराम कौन दे!
आराम कौन दे!
रौशन💐🙏
Zakirhusain Abbas Chougule
18-Mar-2022 12:33 AM
बहुत खूब
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Shrishti pandey
15-Mar-2022 06:09 PM
Nice
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Seema Priyadarshini sahay
15-Mar-2022 05:37 PM
बहुत खूबसूरत
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